Thursday, July 18, 2013

विधानसभा मैदान में सर्कस तो विधानसभा के अन्दर नौटंकी !!

विधानसभा में विश्वासमत के दौरान अध्यक्ष और सदस्य। 
दोपहर को अपने एक मित्र को फोन घुमाया, पूछा कहाँ हो यार बड़ा शोरगुल हो रहा है ? तपाक से जवाब आया, विधानसभा के तरफ हैं। मैंने उत्सुकतावश पूछा, सरकार विश्वासमत कैसे हाशिल करती है यही देखने गए हो क्या ? जवाब आया, नहीं यार वहां देखना क्या है सब पहले से स्क्रिप्टेड है बस सब प्ले कर रहे हैं। विधानसभा की ऐसी नौटंकी देखने से बेहतर है की विधानसभा मैदान में लगे इम्पायर सर्कस देखूं। सो वहीँ आया हूँ। मैंने पूछा ऐसा क्यूँ कह रहे हो भाई, क्या सचमुच ये सब नौटंकी है ? तो उसने कहा रुको मैं तुझे समझाता हूँ।

छह महीने पहले अच्छी भली चल रही सरकार से पहले समर्थन वापस लेना और फिर वैसी ही स्थिति में सरकार बनाना क्या नौटंकी नहीं है ? छह महीनो तक आजकल की स्थिति में पुरे प्रदेश को रखना क्या नौटंकी नहीं है ? अपनी वारंटी भाभी को अचानक से सबके सामने शुद्ध रूप से पेश करना क्या नौटंकी नहीं है ? धीरे-धीरे देश स्तर के तिगडम लगा कर तैतालीसो महाशय का सदन में पहुंचना क्या किसी नौटंकी से कम था ? सभी दागियों का एकसाथ यह कहकर समर्थन लेना की सदन में सभी माननीय हैं क्या नौटंकी नहीं है ? नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री का सदन में संसद की तरह एक घंटे का भाषण देना क्या नौटंकी नहीं है? हर सरकार में सरकार का हिस्सा रहने वाले का सदन में अपना इतिहास बताना और खुद को पाक साफ़ बताना क्या नौटंकी नहीं है? अध्यक्ष का पद पर बने रहना क्या नौटंकी नहीं है ? अध्यक्ष पद पर बैठकर वोटिंग से पहले नेता प्रतिपक्ष से दागियों को वोट देने के नाम पर दिखावटी बहस करना क्या नौटंकी नहीं है ?

उसने फिर कहा देखो तुम ऐसे नहीं समझोगे ... तुम्हे थोडा विस्तार से बताना होगा। देखो सरकार इसलिए नहीं गिराई गयी थी की उनकी सात शर्त मानी नहीं जा रही थी बल्कि इसलिए गिराई गयी थी की सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर बनानी थी क्यूंकि हाथ धीरे-धीरे सबको अपने तोते की गिरफ्त में लेने वाली थी। गुरु जी के नाम पर जो वोट मिल रहे हैं वो भी नहीं मिलते। दूसरा सरकार बनाने में छह महिना इसलिए लगाया गया और राष्ट्रपति शासन ख़त्म होने के दिन ही विश्वासमत हाशिल इसलिए किया गया ताकि सरकार यदि 6 महीने तक भी चलती है तो लोकसभा का चुनाव पार हो जायेगा। और इसी छह महीनो में सभी एग्रीमेंट हुए। सरकार की रुपरेखा तय की गयी। स्क्रिप्ट लिखी गयी की कैसे सबको सामने लाना है। कैसे निर्दलीय को मनाना है। कैसे विपक्ष को मनाना है। कैसे विधानसभा अध्यक्ष को नाटकीय ढंग से पद पर बने रहने देना है। वैसे विधानसभा को पद पर बने रहने और स्क्रिप्ट सही ढंग से प्ले करने का अब फायदा यही हुआ की उनकी रांची सीट भी लगभग पक्की हो गयी।
दरअसल झारखण्ड में सभी दल के नेता सरकार बनाने के पक्ष में पहले से ही थे । कोई नहीं चाहता था की चुनाव हो। लेकिन कोई अपने केन्द्रीय नेतृत्व से तो कोई पिछले कई तलाक/घटना/दुर्घटनाओ से डरे सहमे थे। इसलिए कोई आगे नहीं बढ़ रहा था। हेमंत आगे बढे और विश्वासमत हाशिल किया। वैसे हेमंत के आत्मविश्वास को देख भी यह अंदाजा लगाया जा सकता था की आखिर माजरा क्या है। हेमंत उतावलेपण में बोले जा रहे थे, गलती पर उन्हें टोका जाता और पहली बार का एहसास भी कराया जा रहा था। फिर हेमंत कहते आगे आगे देखिये होता है क्या ?

अब हेमंत को कौन बताये की हमसब तो 13 साल से देखते आ रहे हैं। वैसे हेमंत को कोई बताये की देखना आपको है क्यूंकि बाबूजी के नाम पर आप मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन आपकी अगली पीढ़ी को जनता राजनीति में टिकने देगी या नहीं इसकी गारंटी नहीं है। गारंटी सिर्फ एक ही शर्त पर मिल सकती है यदि आप सौभाग्य से मिले इस मौके का सही फायदा उठाते हैं और वो कर दिखाते जो अबतक झारखण्ड को नशीब नहीं हुआ है।

Thursday, May 2, 2013

वारिशतांड़ LIVE !!

अलकतरे से छलछलाती काली सड़कें और उसपर पड़ी सफ़ेद पट्टी..... सड़क के दोनों किनारे कमर तक सफ़ेद रंग से रंगे हुए झूमते गाते हरे भरे पेड़.... देख ऐसा प्रतीत होता जैसे गोड्डा के सरकंडा मोड़ से 19 किलोमीटर तक सफ़ेद धोती और सर पर पत्तों का मुकुट पहने दोनों हाथ जोड़ कोई हमारा स्वागत कर रहा हो। गाड़ी जैसे जैसे वारिशतांड़ की ओर बढती है सड़क के किनारे खड़े लोग गाड़ी की ही रफ़्तार से हर बार अपनी गर्दन को घुमा हर उस चमचमाती कारों पर निगाहें दौडाते हैं जो कलतक इस राश्ते पर झांकी मारने तक नहीं आते थे।

सुंदरपहाड़ी से 3-4 किलोमीटर पहले गाड़ी दाहिने मुड़ती है। जिंदल के कार्यालय और राष्ट्रपति के कार्यक्रम स्थल को चीरती हुई जब हम करीब 3 किलोमीटर आगे बढ़ते है तो कुछ खुबसूरत झोपड़ियाँ दिखती है। मिटटी से बनी झोपड़ियों के दिवार की चिकनाहट और उसपर बनी कलात्मक डिजाईन से गाँव के लोगों की मेहनत और कला का साफ पता चलता है।  चापानल पर आदिवासी स्त्रियाँ और बच्चे स्नान करते दिखते हैं। कुछ और आगे बढ़ते हैं तो सड़कों पर महुआ सुख रहा दिखता है। झारखंडी अंगूर को ऐसे सड़कों पर पड़ा देख रहा नहीं जाता कैमरे निकाल इस सुंदर और मोहक तस्वीर को कैमरे में कैद करता हूँ। उसके ठीक बगल में घर के चौताल पर एक व्यक्ति पेड़ की छाल से रस्सी बनाता दिखता है। मेरे मुख से जोहर शब्द फूटते ही सामने बैठा व्यक्ति मुस्कुराकर कहता है जोहर। जब मैं उनसे जानना चाहा की क्या आपकी भी जमीन जिंदल के लोग ले रहे हैं? तो वो कुछ भी कहने से इंकार कर देता हैं। जवाब में सिर्फ इतना मिलता है की जो भी कहेंगे ग्राम प्रधान कहेंगे।

थोड़ी दूर और आगे बढ़ते हैं तो झोपड़ियों के बीच एक खुबसूरत सा घर दिखता है। दूर से ही यह साफ़ हो जाता है की वही ग्राम प्रधान का घर होगा। दरवाजे पर दस्तक देते ही चैन से सो रहे ग्राम प्रधान डॉ श्रीकांत राम निकलते हैं और जिंदल की सराहना करते यही कहते हैं की सभी गाँव वालों ने जमीन अपनी मर्ज़ी से दी है। लेकिन जब ग्राम प्रधान के साथ गाँव वालों से बात करने हम निकलते हैं तो एक भी ऐसा शख्स नहीं मिला जो यह कह दे की उसने जमीन अपनी मर्जी से दी है। कुछ लोग कैमरे के सामने बोले भी तो जिंदल के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते दिखे। लेकिन ग्राम प्रधान यही कहकर बात को टालते हैं की अनपढ़ लोग है ज्यादा बोलते नहीं या फिर इन्हें समझ में ही नहीं आता।

तीन दिनों तक गाँव के चक्कर लगाने के बाद यही समझ में आया की जिंदल ने सरकार और प्रशाशन के दबाव में गाँव वालों की जमीन अपने नाम कर ली। अभी तक न किसी को पूरा पैसा मिला न योग्य को नौकरी। अब गाँव वाले जिंदल के कार्यालय से लेकर उपायुक्त कार्यालय तक चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। क्यूंकि जिंदल ने हर उस जुबान पर गाँधी को खड़ा कर रखा है जिसकी जुबान की समाज में थोड़ी भी इज्ज़त और जोर है।

(वारिशतांड अबतक झारखण्ड के मानचित्र पर कोई मायने नहीं रखता था। गोड्डा जिले के आधे से अधिक ऐसे लोग होंगे जिनके कानो तक इस गाँव के नाम की पुकार नहीं पहुंची होगी। लेकिन अब गोड्डा जिले का यह गाँव सुर्ख़ियों में है क्यूंकि जिंदल ने वारिशतांड में 1320 मेगावाट का थर्मल पॉवर बैठाया है।)

 

Thursday, April 25, 2013

ब्लैकमेल होता रहा है झारखण्ड !!

देश का 28 वाँ राज्य झारखण्ड का गठन राज्य की करीब 3 करोड़ की जनता के साथ एक तरह का ब्लैक मेलिंग ही था। राज्य गठन की मांग अवश्य ही झारखंडी जनता के सपनो को साकार करने का सबसे सुनहरा अवसर हो सकता है, लेकिन झारखंडी जनता की भावनाओ और उनके उम्मीदों को रात के अँधेरे में चुपचाप राजनीति  के नफा नुकसान के लिए शपथ ग्रहण समारोह राज्य की जनता के लिए विशुद्ध रूप से ब्लैक मेलिंग ही कहा जायेगा।

ब्लैक मेलिंग इस माईने में की राज्य की जनता ने जो जनादेश दिया था वो एकीकृत बिहार सरकार के गठन के लिए था न की नए राज्य झारखण्ड के लिए। फिर भी केंद्र में बैठी भाजपा की अटल बिहारी सरकारी ने बहुत ही चालाकी से जनता का बगैर नया जनादेश लिए अपनी पार्टी की सरकार रातो रात थोप दी। उस काली रात  से लेकर आजतक यहाँ की जनता हर पल हर वक़्त और हर एक बार सिर्फ और सिर्फ ब्लैक मेल ही हुई है। 

बाबूलाल की सरकार ने भले ही राज्य की जनता की दिल जीतने की पुर जोर कोशिश की हो लेकिन यह कोशिश भी कहीं न कहीं जनता के साथ एक ब्लैक मेलिंग ही थी। क्यूंकि राज्य अलग होने के साथ ही बाबूलाल और अर्जुन मुंडा की राहें हर किसी को नज़र आने लगी थी और बाबूलाल ने भी कुर्सी सँभालते ही अपनी एक अलग लकीर खींच उन तमाम लोगों के दिल के साथ ब्लैक मेलिंग किया जिसने भी उनके साथ राज्य के विकास के सुनहरे ख्वाब बुने थे। 

बाबूलाल अर्जुन शिबू और कोड़ा बारह वर्षों में ये चार कंधे जरुर बदले लेकिन हर एक कंधे ने सचमुच इस राज्य को कन्धा ही दिया। इस बदनसीब राज्य को एक पांचवा कन्धा भी मिला जो 534 दिनों (आजतक ) तक इसे अनाथ की तरह पाला लेकिन जैसे एक अनाथ को पालने वाला अनाथ के साथ अक्सर ब्लैक मेलिंग ही करता है यहाँ यह पांचवा खुद को महामहिम कह भी वही कर रहा है। हालाँकि इस राज्य पर तीन टर्म में सबसे अधिक दिनों  (2130 दिन) तक राज करने वाले अर्जुन मुंडा की दरबार से जो कुछ भी विकास की धारा बही वह सराइकेला और खरसावाँ तक पहुँचते पहुँचते सुख गयी। अर्जुन मुंडा ने साफ़ कर दिया की वो राज्य की जनता के विकास का माला जप कर उन्हें सिर्फ ब्लैक मेल ही कर रहे हैं। शायद अर्जुन मुंडा की यही ब्लैक मेलिंग हर बार उन्हें कुर्सी से उतार फेकी लेकिन समय के साथ न बदलते हुए अपने क्षेत्र तक सिमटना ही अर्जुन मुंडा को अबतक सिमटाकर ही रखा है। इसलिए तो भाजपा जब देश के लिए पार्टी के होनहारों की लिस्ट तैयार करती है तो झारखण्ड के नेताओं के नाम ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं। 

राज्य की जनता के साथ सुदेश महतो ने भी कम ब्लैक मेलिंग नहीं की है। जाती बिरादरी और विकास के नाम पर हर बार वोट समेटते रहे लेकिन विकास सिर्फ खुद का और पार्टी का हुआ। झारखण्ड में बनने वाली हर उस सरकार को सहारा दिया जो तीन टांगो पर बनी। और इसी सहारे की दुहाई देकर खुद को मजबूत कर जनता को ब्लैक मेल किया।

खुद को आदिवासियों का देवता और संथाल का मसीहा मानने वाले शिबू सोरेन भी इस राज्य की जनता को ठीक वैसे ही ब्लैक मेल किये जैसे हर किसी ने अपनी कूबत के अनुसार किया। जिस शिबू के सिर्फ नाम और तस्वीर पर संथाल की जनता जान तक लुटा देने को आतुर हो जाती थी शिबू ने उन्ही जनता के साथ ब्लैक मेलिंग की। परिवार के आगे अपने दमदार लोगों को खोया और जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ किया। हर बार अपने स्वार्थ को देखकर सरकार बनायीं और फिर स्वार्थ के लिए गिराई भी। शिबू के धीरे धीरे पार्टी पर पकड़ कम पड़ने का ही असर है की एक के बाद एक पुराने नेता झामुमो से मुख मोड़ रहे हैं। 

लेकिन बीते हुए इन ब्लैकमेलरों से  चार कदम आगे अगर झामुमो और इस राज्य की जनता के साथ सभी सीमाएं लांघकर कोई ब्लैक मेल कर रहा है तो वो है कोंग्रेस। पहले लालच और सीबीआई की धमकी के साथ मुंडा से तालाक करवाने के बाद भी खुद से गंठजोड़ न कर राज्य को एक अनाथ की तरह रहने को मजबूर करने में कोंग्रेस सबसे बड़ा ब्लैक मेलर साबित हुआ है। 

अब झारखण्ड में सरकार बनने के जितने भी बादल बचे थे वे लगभग छंट चुके हैं, और चुनाव की किरण फूटने ही वाली है। तो अबतक बारह वर्षों में जितने भी दफे आप ब्लैक मेल हुए या आपके साथ ब्लैक मेलिंग हुई। उसका हिसाब चुकता करने का समय आ चूका है। तो फिर कमर कस लीजिये। लेकिन हाँ इसबार हिसाब थोड़ा हिसाब से होना चाहिए कहीं फिर ऐसा हिसाब न हो जाये जिससे ब्लैक मेलर को फिर से ब्लैक मेलिंग का मौका मिल जाये। जोहार !